मनोज त्रिपाठी, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में चुनावी मुद्दे क्षेत्रवार बदलते रहते हैं, लेकिन इस बार के चुनाव में प्रत्याशियों के चयन को लेकर असंतोष हर जगह नजर आया। इसके अलावा जातियों का गठजोड़ मुद्दों पर हावी होता गया। न राम मंदिर का प्रभाव देखने को मिला और न ही ध्रुवीकरण मुद्दा बन पाया।
यूपी में लोकसभा की 80 सीटों के परिणाम भाजपा के हित में न होने के इसके पीछे कई कारण हैं। टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के और पांच वर्षों तक सांसदों की निष्क्रियता तो इस परिणाम के मुख्य कारण रहे ही, जातीय समीकरण को पहचानने में भी भाजपा से चूक हुई। इसके चलते भाजपा उन सीटों पर भी चुनाव हार गई, जहां से उसे जीत की शत-प्रतिशत उम्मीद थी।
आरक्षण व पेपर लीक मुद्दों की काट नहीं ढूंढ पाई पार्टी
चुनाव के पहले चरण से ही पेपर लीक मामले को चुनावी मुद्दा बनाकर युवाओं को कांग्रेस व सपा ने अपने पक्ष में करना शुरू कर दिया था। इस मुद्दे को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित समूचे विपक्ष ने सातों चरणों में हर मौके पर उठाया। दूसरी ओर भाजपा ने इस मामले में अपना पक्ष रखने की भी जरूरत नहीं समझी।
युवाओं में यह बड़ा फैक्टर बना और इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। अग्निवीर योजना को भी विपक्ष बड़ा चुनावी फैक्टर बनाने में सफल रहा, जिसकी काट भाजपा नहीं ढूंढ़ पाई। विपक्ष की ओर से उछाले गए संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने के मुद्दे को भी भाजपा नहीं संभाल पाई।
मौजूदा सांसदों को भाजपा ने इस बार मैदान में उतारा
इसके अलावा टिकट वितरण में भी चूक हुई। मौजूदा 49 सांसदों को एनडीए ने चुनावी मैदान में उतारा। इनमें से ज्यादातर सांसदों ने पांच वर्षों तक अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों में मतदाताओं से दूरी बनाए रखी। वह केवल मोदी के नाम पर इस बार भी चुनाव जीतने का सपना देख रहे थे।
मुफ्त अनाज योजना सहित केंद्र की अन्य योजनाओं से मतदाता जरूर प्रभावित थे, लेकिन कांग्रेस ने पांच की बजाय 10 किलो अनाज मुफ्त में देने की घोषणा कर भाजपा को पीछे ढकेल दिया। सपा की आटा व डाटा मुफ्त देने की योजना का असर भी मतदाताओं पर हुआ। भाजपा इसकी काट भी नहीं ढूंढ़ पाई।
ज्यादा प्रभावी नहीं रहा राम मंदिर का मुद्दा
लोगों की भावनाओं से जुड़े राम मंदिर के मुद्दे से भाजपा को काफी उम्मीदें थीं। अधिकतर सीटों पर प्रचार के दौरान राम मंदिर के मुद्दे को भाजपा ने उठाया भी, लेकिन इसका चुनावी लाभ पार्टी को नहीं मिल सका।
पन्ना प्रमुखों का प्रयोग भी नहीं हुआ सफल
भाजपा ने इस बार चुनाव जीतने के लिए पन्ना प्रमुखों की भी तैनाती की थी। वोटर लिस्ट के हिसाब से हर पन्ने का प्रभारी बनारी बनाया गया था। इस चुनाव में भाजपा का यह प्रयोग भी पूरी तरह से सफल नहीं साबित हुआ। अमित शाह से लेकर संगठन के स्तर पर पन्ना प्रमुखों से काफी उम्मीदें लगाई गईं थीं कि यह मैनेजमेंट चुनाव जीत का बड़ा हथियार साबित होगा, लेकिन प्रमुख लोगों को मतदान केंद्रों तक न ला सके।
इस बार महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे ने बिगाड़ा भाजपा का खेल
कांग्रेस-सपा ने महंगाई व बेरोजगारी के मुद्दे पर भाजपा को घेरा, जिसका जवाब भाजपा के पास नहीं था। जरूरी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के अलावा बेरोजगारों को नौकरी के मुद्दे पर भाजपा पलटवार न कर सकी। कांग्रेस ने 30 लाख बेरोजगारों को नौकरी देने का मुद्दा उठाया, जो भाजपा के खराब प्रदर्शन पर प्रभावी रहा।
लाभार्थियों से नहीं मिला कोई लाभ
केंद्र व राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों से भाजपा को बड़ी उम्मीदें थीं लेकिन विपक्ष मतदाताओं को यह समझाने में सफल रहा कि यह तो सरकार की जिम्मेदारी ही है। भाजपा ने लाभार्थी संपर्क अभियान संचालित किया, लेकिन उसका भी असर चुनाव परिणामों में नहीं दिखाई दिया। लाभार्थी परिवारों के घर पर स्टीकर भी लगाए गए थे।
भाजपा को सदमे में डालने वाले रहे सीटों के परिणाम
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संजीव बालियान को टिकट दिए जाने का जो विरोध शुरू हुआ था, उसका संदेश आसपास के क्षेत्रों में गया। इससे भाजपा को दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा।
रुहेलखंड के पीलीभीत में भाजपा के जितिन प्रसाद ने जीत दर्ज कर जरूर सम्मान बचाया, लेकिन यहां कई क्षेत्रों में मुस्लिमों के साथ पिछड़ों व दलितों ने सपा-गठबंधन को मजबूती दे दी। ब्रज में हेमामालिनी की जीत इस बात का उदाहरण है कि मतदाताओं से यदि आप जुड़े हैं तो जनता आपके साथ है।
अवध में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सीट भाजपा के लिए मजबूत मानी जाती रही है, लेकिन फैजाबाद में मतदाताओं का भाजपा को नकारना आश्चर्यजनक है।
फेल हुआ बूथ प्रबंधन
भाजपा ने बूथ प्रबंधन के प्रयास पहले शुरू किए थे, पर जमीनी स्तर पर यह उतर न सका। 1.6 लाख बूथों पर भाजपा ने प्रभारी तैनात किए थे। दूसरी ओर कांग्रेस सिर्फ 80 हजार बूथों पर प्रभारी तैनात कर पाई थी, लेकिन वे सक्रिय रहे।
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